बदायूं: राजकीय मेडिकल कॉलेज की चौथी मंजिल से कूदकर एक मरीज ने आत्महत्या कर ली, जिससे मेडिकल कॉलेज में अफरातफरी मच गई। घटना के समय न तो प्राचार्य मौजूद थे और न ही सीएमएस। पुलिस सूचना मिलने पर मौके पर पहुंची और शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजकर जांच शुरू कर दी है।
अस्पताल में युवक की आत्महत्या: मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में सुधार की आवश्यकता
जिला संभल के थाना जुनावाई क्षेत्र के गांव हथिया वली के निवासी सुभाष टीबी की बीमारी से पीड़ित थे। यह बीमारी, जिसे तपेदिक के नाम से भी जाना जाता है, एक गंभीर संक्रामक रोग है जो मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करता है, लेकिन यह शरीर के अन्य हिस्सों को भी संक्रमित कर सकता है। सुभाष की हालत पिछले कुछ समय से बिगड़ रही थी, और उनके परिवार ने अंततः उन्हें चिकित्सा सहायता के लिए अस्पताल ले जाने का निर्णय लिया। लगभग एक सप्ताह से वे मेडिकल कॉलेज के टीबी वार्ड में भर्ती थे, जो चौथी मंजिल पर स्थित है। यह वार्ड विशेष रूप से तपेदिक से पीड़ित मरीजों के लिए बनाया गया है, जहां उन्हें उचित देखभाल और उपचार प्रदान किया जाता है। अस्पताल में सुभाष को विभिन्न प्रकार की चिकित्सा प्रक्रियाओं और दवाओं का सामना करना पड़ा, जो उनकी बीमारी के इलाज के लिए आवश्यक थीं। सुभाष का परिवार उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंतित था, क्योंकि टीबी एक ऐसी बीमारी है जो न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डाल सकती है। अस्पताल में बिताए गए इस समय के दौरान, उनके परिवार के सदस्य नियमित रूप से उनसे मिलने आते थे, ताकि उनका मनोबल बढ़ा सकें और उन्हें इस कठिन समय में समर्थन प्रदान कर सकें। इसके अलावा, अस्पताल के स्टाफ ने भी सुभाष की देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी। डॉक्टरों और नर्सों ने उनकी स्थिति की लगातार निगरानी की और उन्हें आवश्यक उपचार दिया। इस दौरान, सुभाष ने अपने अनुभवों के बारे में भी बात की, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वह इस बीमारी से लड़ने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं। उनकी बीमारी ने न केवल उन्हें बल्कि उनके परिवार को भी इस चुनौती का सामना करने के लिए मजबूर किया है, और वे सभी मिलकर सुभाष के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना कर रहे हैं।
अस्पताल में युवक की आत्महत्या: मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की प्रणाली पर सवाल
शुक्रवार की सुबह, एक युवा व्यक्ति ने अपने बिस्तर से उठकर अचानक वार्ड की खिड़की से बाहर कूदने का निर्णय लिया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। यह घटना अस्पताल के एक मानसिक स्वास्थ्य वार्ड में हुई, जहाँ वह उपचाराधीन था। युवक की इस आत्मघाती कदम ने न केवल उसके परिवार को गहरे सदमे में डाल दिया, बल्कि अस्पताल के कर्मचारियों और अन्य मरीजों के बीच भी चिंता और भय का माहौल उत्पन्न कर दिया। घटना के बाद, युवक के पिता ने अस्पताल प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए हैं, जिसमें उन्होंने उपचार में लापरवाही और समुचित देखरेख की कमी का उल्लेख किया है। उनका कहना है कि अस्पताल में उचित निगरानी और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशीलता की कमी थी, जिससे उनके बेटे को इस तरह के कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा। पुलिस इस मामले की गहन जांच कर रही है, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि क्या अस्पताल के कर्मचारियों ने अपने कर्तव्यों का पालन किया या नहीं। जांच में यह भी देखा जाएगा कि क्या युवक को आवश्यक मानसिक स्वास्थ्य सहायता और देखभाल प्रदान की गई थी। इस बीच, मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य, डॉक्टर अरुण कुमार ने मीडिया को बताया कि वे वर्तमान में अवकाश पर हैं, लेकिन उन्होंने आश्वासन दिया कि मामले की जांच की जा रही है और अस्पताल प्रशासन इस मामले को अत्यंत गंभीरता से ले रहा है। उन्होंने कहा कि जांच के परिणामों के आधार पर उचित कार्रवाई की जाएगी। इस घटना ने मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की प्रणाली में सुधार की आवश्यकता को भी उजागर किया है, जहाँ ऐसे मामलों की रोकथाम के लिए बेहतर उपायों की आवश्यकता है। परिवार और समाज को इस तरह की घटनाओं से बचाने के लिए, मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार और पेशेवर देखभाल की आवश्यकता पर जोर दिया जा रहा है। इस घटना ने यह सवाल भी खड़ा किया है कि क्या अस्पतालों में मानसिक स्वास्थ्य के मरीजों के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय मौजूद हैं या नहीं।
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