सीहोर सरकारी स्कूल: सरकारी कार्यों में अधिकारियों की धीमी कार्यशैली अक्सर चर्चा का विषय बनती है। जनता की शिकायतें और समस्याएं फाइलों के ढेर में दबकर रह जाती हैं, और जब मामला सार्वजनिक होता है, तब जवाबदेही की प्रक्रिया आरंभ होती है। ऐसा ही एक मामला मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में सामने आया है, जहां जिला शिक्षा अधिकारी पर एक गंभीर शिकायत को डेढ़ साल तक दबाए रखने का आरोप है।
सीहोर के स्कूलों में मजारों की समस्या पर प्रशासन की अनदेखी
वास्तव में, जानकारी के अनुसार, सीहोर जिले के कई सरकारी स्कूलों में मजारों का जाल बच्चों और शिक्षकों के लिए परेशानी का कारण बन रहा है। स्कूल प्रबंधन ने करीब डेढ़ साल पहले जिला शिक्षा अधिकारी संजय सिंह तोमर को शिकायत दर्ज कराई थी कि मजारों के कारण स्कूल का वातावरण पढ़ाई के लिए अनुकूल नहीं रह गया है। हालांकि, अधिकारी ने इस शिकायत पर कार्रवाई करने के बजाय इसे नजरअंदाज कर दिया। कैमरे पर दिए अपने बयान में अधिकारी स्वयं स्वीकार करते हैं कि शिकायत उनके पास पहुंची थी, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
प्रशासनिक लापरवाही या जानबूझकर अनदेखी: स्कूलों में मजारों की मौजूदगी पर सवाल
शिक्षा अधिकारी ने अब जांच कराने की बात कही है। हालांकि, बिना किसी जांच के वे यह भी कह रहे हैं कि उत्कृष्ट स्कूल सीहोर में केवल एक मजार है। आश्चर्य की बात यह है कि यदि समय पर कार्रवाई की गई होती, तो यह पता चलता कि एक दर्जन से अधिक स्कूल ऐसे हैं जहां मजारें मौजूद हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अधिकारी जानबूझकर इस समस्या को नजरअंदाज कर रहे हैं, या फिर यह केवल प्रशासनिक लापरवाही का एक और उदाहरण है?
विद्यालय के अध्ययन वातावरण पर मजारों का बढ़ता प्रभाव: समाधान की अनदेखी क्यों?
इसके अतिरिक्त, यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि मजारों के कारण विद्यालय का वातावरण प्रभावित हो रहा है। इससे छात्रों और शिक्षकों को अध्ययन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, और यह समस्या दिन-प्रतिदिन अधिक गंभीर होती जा रही है। प्रश्न यह उठता है कि जब यह समस्या इतने लंबे समय से विद्यमान है, तो अभी तक इस पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई है? क्या अधिकारियों का रवैया इस ओर संकेत करता है कि इस जटिल समस्या की अनदेखी की जा रही है?
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